हम वही हैं..

कभी किसी बेजुबान की
बोलने की कोशिश में
थर-थराते  होंठ देखे हैं ?
कुछ बोल पाने की जुगत में 
सांस उखड़ते देखा है ?
अगर नहीं....
तो महसूस करो
हम वही एक बेजुबान हैं..


रातों में, भयंकर मौत सी
सरपट दौड़ती सड़कों पर 
निरीह जान के वजूद पर 
गाड़ियों को गुजरते देखा है ?
अगर नहीं....
तो महसूस करो 
हम वही एक निरीह जान हैं..


 कश्ती रहे सामने मगर  
बीच भंवर में
किसी अकेले इंसान को 
बस... एक बार...
जी पाने की चाहत में
तिल-तिल मरते देखा है ?
अगर नहीं....
तो महसूस करो 
हम वही एक इंसान हैं..         

2 टिप्‍पणियां:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

महसूस करूँ ?.... यही तो महसूस किया है , बोलने की कोशिश में जब होते रहे बेजुबां तो एक कलम ले ली ... और रंगते गए दास्तान

संजय भास्‍कर ने कहा…

वाह ! बेहद खूबसूरती से कोमल भावनाओं को संजोया इस प्रस्तुति में आपने ...