ये कौन जाने ?
जाने क्या साबित होगी
ये धरती हमारी खातिर
ये कौन जाने ?
हम मरेंगे गुमनामियों में
कुचले हुए कांटों के जैसे
या होगा स्वागत हमारा
फुल की तरह,
गर इस धरा की खातिर
कुछ न कर पाए
लगती रहेगी रूह तक
ये शूल की तरह,
आबो हवा जो बिगड़ी
कल जाने क्या हो ?
उपज के ठीकेदारों के हाथों
गर बिखेरे गए इस धरती पर
हम धूल की तरह ,
खुशबुदार कहाँ हो पाएंगे
हम गुलाबो के मानिंद
धरती पर गिरेंगे भी
हम धूल की तरह ! खो जायेंगे ......
1 टिप्पणी:
Rashmi ji..
Apki pratikriyayen mera haunsale ko duguna kar deti hain.. Bahut-bahut dhanyawaad..
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