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जब भी बादल घिरते थे
चाँद शबाब पर हुआ करता था
तारे जब दिखा करते थेलिखा करते थे कहने
अपने दिलों की बातें
और जानने को तेरे इरादे
वक्त वो भी आया, चिट्ठियों में..
तुमने सब क़ुबूल किया
बंधे गाँठ सब खोल दिए
जो जुबां न कह पाए कभी
तुने कागजों में बोल दिए
अब लिखने की कोई वजह नहीं
फिर भी लिखता हूँ..
यकीं जो न आया तुझपर
देखा है कई बार
तुझे इनायतों के इंतिजार में,
मगर खुद को ही समझाया किये अक्सर
फर्क तो तब जाना
तुझमें और तेरे लिखे पर
किसी और को लिखा ख़त
तेरे नाम से
मेरे आँगन आई जो उड़कर
लिखे तेरे हरेक अक्षर
चुभने लगे जैसे नश्तर
मुझे पता नहीं, मैं आज बेवजह...
क्या बेकार लिख रहा हूँ
एक मुश्किल तब हुई थी
जब तुझे पहली बार लिखा था
एक मशक्कत अब है, जब...
आखिरी बार लिख रहा हूँ...
10 टिप्पणियां:
वक्त वो भी आया, चिट्ठियों में..
तुमने सब क़ुबूल किया
बंधे गाँठ सब खोल दिए
जो जुबां न कह पाए कभी
तुने कागजों में बोल दिए
अब लिखने की कोई वजह नहीं
फिर भी लिखता हूँ..
kahta jata hun, bandhe kuch gaanth hain , kholna chahta hun
बड़ी अच्छी लगी आपकी यह अभिव्यक्ति !
यह जन्माष्टमी देश के लिए और आपको शुभ हो !
Bahut khub Anilji...
ek sujhav:
चाँद शबाब पर हुआ करती थी
upyukt panktiyon mein Karti thi ke sthan par KARTA THA ka prayoog jyada uchit rahega, mere khayal se...vichar karein
www.poetricprakash.com
श्री कृष्ण जन्माष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें.
bahut hi sunder likha hai aapne........
एक मुश्किल तब हुई थी
जब तुझे पहली बार लिखा था
एक मशक्कत अब है, जब...
आखिरी बार लिख रहा हूँ...
बहुत सुन्दर भावपूर्ण अभिव्यक्ति..
यूँ तो हर लफ्ज़ तुझे याद कर लिख रहा हूँ.....
कागज पे तुझे ढूंढता हूँ पर खुद दिख रहा हूँ......
वाह वाह! अंतिम पंक्तियाँ तो बेहद ही खूबसूरत थीं..
एक मुश्किल तब हुई थी
जब तुझे पहली बार लिखा था
एक मशक्कत अब है, जब...
आखिरी बार लिख रहा हूँ...
kya baat hai..ummda abhivyakti..
आखिरी बार लिख रहा हूँ
बड़ी अच्छी लगी आपकी यह अभिव्यक्ति
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