आखिरी ख़त.. ( अगली प्रस्तुति :- २०.०९.११)

आ बैठा जो दिल में तेरे
दिल से निकालना जरूर, मगर...
कर लेना थोड़ी खातिरदारी भी
तेरी जिंदगी में
कभी न लौटनेवाला
मेहमान समझकर

देखता हूँ अक्सर तुझे
बंद आँखों से भी,
न रोकना मुझे देखने से
आखिरी बार अपने खुदा को
देख पाने वाला
एक इंसान समझकर

भली बुरी यादों से रिश्ता
तोड़ लेना जो
मुझसे जुडी हो, गर
कोई खता हुई हो मुझसे
माफ़ करना, इश्क में पागल
एक नादान  समझकर

कह चूका हूँ अब तक
या कह रहा हूँ जो भी
बुरा मत मान लेना
भूल जाना सब,
मगर हाँ में सर हिलाना
एक अनजान समझकर

दिल की कहो आग
या अरमानों के शोले,
जानकर मुझपे हंस दे
या पलकें अपनी भिगोले, मर्जी तुम्हारी
सवालों के अब वक्त नहीं
खामोश ही रहना, करना क़ुबूल
मेरा आख़िरी सलाम समझकर

हम कोशिश भर.. कर सकेंगे
जीने की तेरे बगैर
बचने की करेंगे तैयारी
तेरी जहरीली यादों से
खुद के लिए मौत का
फरमान समझकर

दुआ के सिवा
न तुम दो हमें कुछ
न हम दिया करेंगे,
हमसे जुडी यादों को भी फेंक देना
मैं दर्द को करूंगा कैद
दिल के तहखानेमें
तेरी बची आख़िरी निशाँ समझकर


तुम क्या रहोगे
दिल में मेरे, किसी नए
दिल में घर बनाओ
इस टूटे हुए दिल को
छोड़ देना, एक टुटा हुआ
मकान समझकर

एक पल के लिए भी जो
अपना माना हो गर तुने
यादें न बनाना, भूल जाना तुम
मुझे कोई खोया हुआ
सामान  समझकर

अगर दिल दुखा रहा हूँ
तेरा आज भी, माफ़ करना
जिद्दी जख्म है
आग से जला रहा हूँ
चलो इक दुसरे से
दूर हो लेते हैं, एक दुसरे को
बेईमान समझकर

मेरी शायरी तू है
अधूरी एक गजल भी है
लिख रहा हूँ तुझे
लिखता ही रहूँ, शायद
तुझे सुना न पाऊं 
कागज कम हो मगर
लिखने की वजह कम ना होगी
तुम मेरी ये तहरीर रख ही लेना
अपने पास मेरा आखिरी
कलाम समझकर..........!
प्रिय पाठकों से...
पुरे १०० नंबर देना..कंजूसी नहीं..
किसी बडबोले शायर की,
झोंकी हुई मेहनत तमाम समझकर...