क्या हो गए हो

क्या थे तुम, क्या हो गए हो
नयी एक "तुम" बनाकर
तुम ना जाने कहाँ,
ग़ुम हो गए हो

क्या देखूं, क्या बयाँ करूं
आखिर तेरी "तुम" से
वो जो एक तुम थी
उसे मेरी वफ़ा भाती नहीं
और जो नई तुम हो
उसे हया आती नहीं

तुम तो खुदा थे मेरी नजर
हम तो हैं ही जुदा ज़माने में
और एक तुम ही जहां में
औरों से जुदा थे मेरी नजर

मेरा कल, मेरा आज थे तुम
मेरी खुशियाँ, मेरी नाज थे तुम
न जाने मेरे जन्नती तुम को लेकर
तुम कहाँ को दफा हो गए हो

सच है, मगर आँखों से देखकर भी
यकीं होता नहीं कि तुम
"मेरी तुम" बेवफा हो गए हो।

1 टिप्पणी:

RAJARAM PRAJAPATI ने कहा…

Very Nice Anil Jee...
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