पत्रिका वागर्थ में छपी युवा कवि संजय राय की कुछ रचनायें पेश हैं...
उसने जब भी
कोई सपना देखा
एक चिड़िया बोली
उसका जब भी
कोई सपना टूटा
एक चिड़िया बोली
अब वह
सपना नहीं देखती
लेकिन वह चिड़िया
रोज उसी तरह बोलती है..
2. एक टुकड़ा शहर
वह जब भी
जाती है बाजार
एक टुकड़ा शहर ले आती है
अपने पर्स में
मेरे भीतर टूटता है
एक गाँव
हर बार
3. टहनियां
3. टहनियां
प्रेम
आसमान का विस्तार है मैं
आसमान से
टहनियां तोड़ता हूँ
4. घर
4. घर
एक पाँव
बढ़ाते ही
वह बहार हो जाती है-
घर से
और
एक कदम पीछे हटने
पर कैद हो जाती है
उस छोटे से कमरे में
उसके घर में
आँगन नहीं है..
11 टिप्पणियां:
bahut hi achhi kshanikayen
सुन्दर
behtarin kshanikayein...hardik badhayee ..mere blog per bhi aapka swagat hai
भावपूर्ण क्षणिकाएं...
सादर...
सभी क्षणिकाएँ अच्छी लगीं ...एक टुकड़ा शहर ने विशेष प्रभावित किया .
बहुत खूब...सुन्दर
bahut sundar anil ji.badhai
कोई सपना टूटा
एक चिड़िया बोली
भावपूर्ण क्षणिकाएं
वह जब भी
जाती है बाजार
एक टुकड़ा शहर ले आती है
अपने पर्स में
मेरे भीतर टूटता है
एक गाँव
हर बार
बहुत सुन्दर है संजय जी कविता..........मेरी शुभकामनाये...
वक़्त मिले तो हमारे ब्लॉग पर भी आयें|
क्या बात है. जवाब नहीं.
भावमयी प्रस्तुति.
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