एक महान रचनाकार को श्रद्धांजलि...

स्व0 हरिवंश राय श्रीवास्तव "बच्चन" जी का जन्म 27 नवंबर 1907 को इलाहाबाद के नज़दीक प्रतापगढ़ जिले के एक छोटे से गाँव बाबु पट्टी में एक कायस्थ परिवार मे हुआ था।  बताने की आवश्यकता नहीं कि ये क्यूँ हमारे दिलो-दिमाग में अभी तक जीवित हैं। स्व0 हरिवंश राय श्रीवास्तव "बच्चन" जी हिन्दी के एक प्रसिद्ध कवि और लेखक थे। स्व0 बच्चन हिन्दी कविता के उत्तर छायावाद काल के प्रमुख कवियों मे से एक हैं। उनकी सबसे प्रसिद्ध कृति मधुशाला है. बच्चन जी हिन्दी के सर्वाधिक लोकप्रिय कवियों में अग्रणी हें।

सबसे पहले उर्दू की शिक्षा ग्रहण करने वाले स्व0 हरिवंश राय "बच्चन" जी ने  में अंग्रेजी में एम्0 ए0 किया और अंग्रेजी साहित्य के विख्यात कवि डब्लू बी यीट्स की कविताओं पर शोध कर पीएच. डी. पूरी की। इनके लिखे कुछ कविताओं-गीतों का प्रयोग हिंदी फिल्मों में भी किया गया, जिन्हें काफी प्रशिद्धि मिली। इन्होने शेक्सपियर के लिखे कुछ नाटकों का हिंदी  भी किया। कुल मिलकर इनकी रचनाओं ने  पाठकों के ह्रदय में अमिट छाप छोड़ी हैं।

इनका पहला विवाह 1923 में श्यामा बच्चन से हुआ जो मात्र 13 वर्ष तक इनके साथ रहीं, दूसरी शादी इन्होने तेजी सूरी से 1941 में किया जो रंगमंच तथा गायन से जुडी हुई थीं जिनके दो पुत्रों में से एक  मशहूर बॉलीवुड अभिनेता अमिताभ बच्चन हैं। तेजी बच्चन बाद के वर्षों तक भी रंगमंच करती रहीं।

उनकी कृति  *दो चट्टानें* को 1968 में हिन्दी कविता का "साहित्य अकादमी पुरस्कार" से सम्मनित किया गया था। इसी वर्ष उन्हें "सोवियत लैंड नेहरू पुरस्कार" तथा एफ्रो एशियाई सम्मेलन के "कमल पुरस्कार" से भी सम्मानित किया गया। बिड़ला फाउन्डेशन ने उनकी *आत्मकथा* के लिये उन्हें "सरस्वती सम्मान" दिया था।
हरिवंश राय बच्चन को भारत सरकार द्वारा सन 1976 में साहित्य-शिक्षा  के क्षेत्र में "पद्म भूषण" से सम्मानित किया गया था। इनकी मृत्यु 18 जनवरी 2003 को हो गई। ये तो चले गए हमें छोड़कर, मगर कृतियाँ उनकी सदा रहेंगी अमर, हमारे दिलों में। 

इनकी बहुत सारी रचनाओं में कुछ के नाम  दिए जा रहे हैं -


  • तेरा हार (1932)
  • मधुशाला (1935)
  • मधुबाला (1936)
  • मधुकलश (1937)
  • निशा निमंत्रण (1938)
  • बचपन के साथ क्षण भर (1934)
  • खय्याम की मधुशाला (1938)
  • सोपान (1953)
  • मैकबेथ (1957)
  • जनगीता (1958)
  • क्या भूलूं क्या याद करूं (1969)
  • नीड़ का निर्माण फिर(1970)
  • और  भी बहुत सारी रचनायें जिनके नाम यहाँ नहीं दिए जा सके हैं।



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