कलम मेरी.. (next on- 23.07.11)

रोज चलती है कलम मेरी
तेरी ही वजह सिर्फ
तय करके चंद रास्ते मगर
कलम मेरी
ठिठक जाती है, ठहर जाती है

गर.. किस्सा शुरू करता हूँ कोई और
लिखने को सिर्फ
नई एक दास्ताँ पूरी भी नहीं होती
एक अधूरी दास्ताँ.. पूरी की पूरी
आँखों से होकर गुजर जाती है

फिर ....
कलम मेरी सहमकर.. 
ठिठक जाती है, ठहर जाती है

कुछ नया खुशनुमा
रचना चाहती है मेरी कलम
तरस जाती है खुशियों को
नहीं मिलती चाहकर भी

स्याही की औकात कहाँ ?
कागजों पर आंसुओं की
बेतरतीब बूँदें उभर जाती हैं

फिर  .....
कलम मेरी सहमी सी
किसी कोने में रहती है घंटों
कोशिश करता हूँ मनाने को
मगर लिखने को मुकर जाती है

और भी रोता हूँ
जब लिख नहीं पाता
जब कलम मेरी डर जाती है
आदतों के खिलाफ...
कलम मेरी ठहर जाती है

7 टिप्‍पणियां:

संजय भास्‍कर ने कहा…

वाह बेहतरीन !!!!
बहुत रोचक और सुन्दर अंदाज में लिखी गई रचना .....आभार

बेनामी ने कहा…

बहुत सुंदर - मनमोहक ब्लॉग - बधाई और शुभकामनाएं

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " ने कहा…

स्याही की औकात कहाँ ?
कागजों पर आँसुओं की
बेतरतीब बूँदें उभर जाती हैं '
................भावों के अंतर्द्वंद की हृदयस्पर्शी अभिव्यक्ति

Md. Nadeem ने कहा…

Bahut acchhi rachna bhai jaan.. Badhai..

Unknown ने कहा…

Bhaskar Ji..

Kaushik Ji..

Surendra Ji..

Nadeem Bhai..

Bahut-bahut shukriya aap sabon ka..
Aapki hausala aafjai mujhmein nai oorja ka sanchar karti hain... Fir jaroor aaiyega....
Bahut-bahut Shikriya...

Amrita Tanmay ने कहा…

बहुत अच्छा लिखा है ..डरकर नहीं जमकर कलम चलायें.vord verification setting me jakar hatayen.kripya..

Unknown ने कहा…

बहुत-बहुत धन्यवाद अमृता जी .... आप हमारे ब्लॉग पर आयीं, प्रोत्साहित किया..
जमकर लिखने वाली बात जम गई.. उम्मीद है आपका प्रोत्साहन मुझे मिलता रहेगा..
धन्यवाद..