एक युवा कवि की प्रस्तुति (अगली प्रस्तुति-10.09.11)




पत्रिका वागर्थ में छपी युवा कवि संजय राय की कुछ रचनायें पेश हैं...

1. चिड़िया बोली

उसने जब भी
कोई सपना देखा
एक चिड़िया बोली

उसका जब भी
कोई सपना टूटा
एक चिड़िया बोली

अब वह
सपना नहीं देखती
लेकिन वह चिड़िया
रोज उसी तरह बोलती है..
2. एक टुकड़ा शहर

वह जब भी
जाती है बाजार
एक टुकड़ा शहर ले आती है
अपने पर्स में

मेरे भीतर टूटता है
एक गाँव
हर बार

3. टहनियां

प्रेम
आसमान का विस्तार है मैं
आसमान से
टहनियां तोड़ता हूँ

4. घर

एक पाँव
बढ़ाते ही
वह बहार हो जाती है-
घर से
और
एक कदम पीछे हटने
पर कैद हो जाती है
उस छोटे से कमरे में

उसके घर में
आँगन नहीं है..

11 टिप्‍पणियां:

रश्मि प्रभा... ने कहा…

bahut hi achhi kshanikayen

vidhya ने कहा…

सुन्दर

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" ने कहा…

behtarin kshanikayein...hardik badhayee ..mere blog per bhi aapka swagat hai

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') ने कहा…

भावपूर्ण क्षणिकाएं...
सादर...

संगीता स्वरुप ( गीत ) ने कहा…

सभी क्षणिकाएँ अच्छी लगीं ...एक टुकड़ा शहर ने विशेष प्रभावित किया .

Amrita Tanmay ने कहा…

बहुत खूब...सुन्दर

Prakash Jain ने कहा…

bahut sundar anil ji.badhai

sm ने कहा…

कोई सपना टूटा
एक चिड़िया बोली
भावपूर्ण क्षणिकाएं

बेनामी ने कहा…

वह जब भी
जाती है बाजार
एक टुकड़ा शहर ले आती है
अपने पर्स में

मेरे भीतर टूटता है
एक गाँव
हर बार

बहुत सुन्दर है संजय जी कविता..........मेरी शुभकामनाये...

वक़्त मिले तो हमारे ब्लॉग पर भी आयें|

संजय भास्‍कर ने कहा…

क्या बात है. जवाब नहीं.

Kunwar Kusumesh ने कहा…

भावमयी प्रस्तुति.