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मेरी जिंदगी मुझको तो इतना बता भी...
एक बेकसूर दिल को क्यूँ राहत दी तुमने,
और फिर उसे ही क्यूकर सजा दी ?
इश्क वो आग है, दहकती ही जाये
जलने वाले खुद ब खुद जलें इश्क में
कोई कहाँ रोक पाए...
मेरे दिल, दीवाने दिल को
धड़कना तो था ही
फिर जालिम प्रेम - अगन को
क्यूँ तूने हवा दी ?
भूलना ही था, फिर अपना बनाया क्यूँ ?
दिल को मेरे, दिल में तेरे
क्यूँ मौका दिया घर बनाने का
मेरे ख्वाबों को अपने वादों से सजाया क्यूँ ?
सोच ले ....बेवफा मुझको कहने से पहले
पूछ ले ...अपने दिल से, क्या तूने वफ़ा की ...?
2 टिप्पणियां:
सुंदर रचना....धन्यवाद...:)
Dhanyawaad S.Vikram Bhai....
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