जाने कैसे !


हमारा तो मुश्किल रोना भी होता है,
जाने वो कैसे हंसा करते हैं.
ये अलग बात है
हम जीते उन्हें ही देख कर
ख़ुशी  वो  हैं हमारी.
उन्ही से गिला करते हैं.
रहे जुदा वो फिर भी हमसे'
जब कभी हम मिला  करते हैं.
उन्हें खबर नहीं शायद याद में .
रात भर हम जगा करते हैं
सिर्फ उनको ही लिखा करते हैं.
लाजमी है रात भर जब हम
कागजों की आयातों पे
बेपलक उनसे मिला करते हैं
बड़ों की आँख में खला करते हैं.
सारा दिन सुलगते हैं याद में उनके
शाम को दिल में धुंआ करते हैं
फिर सारी रात हम जला करते हैं
चाहते हैं दिल की उमस
जलन रातों की थोड़ी कम हों
वो ही कहें - क्या चाहकर हम बुरा करते हैं
वो कहेंगे क्या ? उन्हें भी है खबर
हम जतन क्या - क्या किया करते हैं
फिर भी वो हैं पत्थर
 न चलने देते हैं हमें राहे मुहब्बत में
 न खुद ही चला करते हैं..

3 टिप्‍पणियां:

संजय भास्‍कर ने कहा…

बहुत ही कमाल की रचना है

संजय भास्‍कर ने कहा…

करीब 20 दिनों से अस्वस्थता के कारण ब्लॉगजगत से दूर हूँ
आप तक बहुत दिनों के बाद आ सका हूँ,

Unknown ने कहा…

Bhaskar Ji.. Bahut - bahut shukriya aapka.. Ummeed hai aap swasth hokar fir apni rachnaon se blog-jagat ko sarabor karenge..

Dhanyawaad..