क्या तुम वही हो ..?

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तेरे काम जो आये जिंदगी भर
वो एक आईना पेश करता हूँ
चंद लम्हें नहीं पल अनगिनत
जो बिताये हमने तेरे साथ
एक गहरी - बहुत ही गहरी
मुआयना पेश करता हूँ।

देखना रोजाना शक्ल अपनी
कागज़ के इस आईने में ...
पूछना खुद से बार-बार
क्या तुम वही हो ..?

सिजदे की सी थी वजूद तुम्हारी
खोजना इन हर्फों में छिपी
रत्ती भर भी तुम कहीं हो ..?


खुद को तसल्ली दे लो
झूठ कह लो खुद से, मगर
जैसे दिल पे रखते हैं,
इस कागज़ पर भी
रखकर अपने हाथ कहना
क्या तुम, तुम रही हो ;..?

6 टिप्‍पणियां:

Yashwant R. B. Mathur ने कहा…


कल 28/11/2013 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
धन्यवाद!

Unknown ने कहा…

Shukriya Yashwant Sir...!

Asha Lata Saxena ने कहा…

भावपूर्ण रचना |
आशा

Kailash Sharma ने कहा…

बहुत सुन्दर रचना...

Unknown ने कहा…

Shukriya Asha Saxena Jee..

Unknown ने कहा…

Dhanyawaad Kailash Sharma Sir..