सदियों से जिन्दा ये धरती,
इस धरती पर
आज दम तोड़ रही हैं -
प्रेम..
विश्वास..
बंधुत्व और
इंसानियत....
मार ठहाके हंस रहा है,
लाचारियों पर सच्चाइयों की
मारे फब्तियां कस रहा है -
लाचारियों पर सच्चाइयों की
मारे फब्तियां कस रहा है -
नफरत..
विश्वासघात..
भ्रष्टाचार और
हैवानियत...
क्या यही हश्र होना था
मनु के संतानों का ?
क्यूँ ज्यादा हक़ है हमारी पर
हम से ज्यादा बेईमानों का ?
कौन बदलेगा
इस घिनौनी तस्वीर को ?
कौन संवारेगा
फिर से हमारे तकदीर को ?
मैं?????.. नहीं... नहीं...
मैं क्यूँ ?
यही कड़ी कमजोर बड़ी
मैं क्यूँ ?...
क्या गांधीजी, या भगत ने सोचा कभी..
मैं क्यूँ ?
अगर सोचते तो क्या होता.. ये सोचो..
अगर सोचते तो क्या होता.. ये सोचो..
तुम क्या कम हो ?
एक बार खुद में तलाशो तो सही
एक बार खुद में तलाशो तो सही
भगत-गाँधी, तुम - हम में भी हैं...
फिर किसका इंतिजार है चाह लो कतरा भर भी तुम अगर..
गुल-गुलशन-गुलजार है
फिर ह्रदय पर हाथ रखो
और खुद से पूछो
मैं क्यूँ नहीं ?
फिर ह्रदय पर हाथ रखो
और खुद से पूछो
मैं क्यूँ नहीं ?
2 टिप्पणियां:
क्षमा चाहते हैं दोस्तों के विगत दो - तिन दिनों से हमारा ब्लॉग डिस्टर्ब रहा ... आपने हमारी रचनाएँ पढ़ी.. बहुत - बहुत शुक्रिया !
-www.anilavtaar.blogspot.com
Sorry friends ! Now a days I have a regular computer problem, So I couldn't care my blogs but the pageviews shows your love for me... Thanks for watching my blogs.. I will come soon.... Thanks all of you..
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